सुरते का कोट

सूरते का कोट
आइए आज आपको उस दौर में ले चलता हूँ जब 1965 का युद्ध समाप्त हो चुका था और 62 और 65 की लड़ाई ने भारत देश को सोचने पर विवश कर दिया था। ये वो दौर था जब हरित क्रांति का आगाज हुआ था। चूंकि भारत एक गांवों का देश है, और भारत के गांव और गांवों के लोग अजूबों से कम नहीं होते, जब भी गांवों की बात आती है तो गंवार आदमी और गरीबी की तस्वीर आंखों के सामने तैर जाती है। उस दौर में गांव बहुत ही दयनीय स्थिति से गुजर रहे थे, वे अंग्रेजी गुलामी से तो आजाद हो चुके थे मगर, असमानता , अंधेरे और अभावों से आजाद नहीं हुए थे।

मेरे गांव में एक आदमी था , नाम था सुरता, सुरता बहुत ही नेकदिल और मेहनती आदमी था। मेरे गांव से जिला मुख्यालय महज 4 किलोमीटर की दूरी पर होने के कारण लोग अक्सर दिहाड़ी मजदूरी के लिए शहर आया करते थे। सुरता भी शहर मजदूरी करने गया था। वो मोदियों (बनियों की एक जाति) के हवेली में मजदूरी कर रहा था। वो एक जगह गड्ढा खोद रहा था कि उसमें उसे जमीन के नीचे दबे 12 चांदी के सिक्के मिले। सुरता ठहरा ईमानदार आदमी तो वो सिक्के लेकर सेठ मोदी के पास गया और उन्हें वो सिक्के दे दिए। मोदी सेठ उसकी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुआ। ये वो दौर था जब सेठ साहूकार लोग , बावड़ियां बनवाते, कुएं खुदवाते और राहगीरों के ठहरने के लिए तिबारा(तीन दरवाजों वाला कमरा) बनवाते थे कई सेठ गुड़ और चना भी बंटवाते थे।

सेठ जिसे सुरते की ईमानदारी बहुत पसन्द आई वो उसे मुंबई ले गया, जहां उसका कारोबार था। सुरता मुंबई में 4 साल रहा, तब बंग्लादेश में पश्चिमी पाकिस्तान की दमनकारी नीति चल रही थी, ऐसे माहौल को देखते हुए सुरते ने मोदी सेठ से घर वापसी का कहा। मोदी सेठ ने उसे उसके बचाये पैसे दे दिए और ट्रेन की टिकट करवा दी, सेठ ने सुरते से पुछा की कुछ और चाहिए तो बेहिचक कह देना। सुरते ने झिझकते हुये सेठ से कहा सेठजी आप जो कोट पहनते हैं मुझे वैसा कोट पहनने का बड़ा शौक है, मुझे कोई सस्ता सा कोट दिलवा दीजिये, उसकी बात सुनकर मोदी सेठ मुस्कुराया और अपना एक पुराना कोट सुरते को दे दिया। सुरते को जैसे मन की मुराद मिल गई।

वो गांव लौट आया, और बड़ी शान से कोट पहनकर गांव में घूमता। गांव में किसी ने आज तक कोट नहीं पहना था और गांव में किसी के पास कोट था भी नहीं।
सब सुरते के कोट को देखकर मन ही मन सपने सँजोते की किसी दिन वो भी कोट पहनेंगे। एक दिन गांव के भोलू ताऊ के बेटे की शादी थी, भोलू ताऊ ने हिम्मत की और जाकर सुरते से उसका कोट अपने बनड़े(दूल्हे को गांव में बनड़ा कहते हैं) कि शादी के लिए उधार मांग लिया। सुरता नरमदिल आदमी था उसने सहर्ष ही वो कोट बनड़े को पहनने को दे दिया। पूरे गांव में ये बात फेल गई। अब क्या था साहब अब तो हर कोई आता और कभी ससुराल जाने कभी बेटी के ससुराल जाने कभी बहू को लिवाने और कोई शादी की तारीख पक्की किये जाने के लिए सुरते से कोट मांग कर ले जाने लगे। और सुरता किसी को मना नहीं करता। हद तो तब हो जाती जब गांव में कोई बाहर के मेहमान आते तो जिस घर में मेहमान आते उसका मुखिया भी कोट मांग कर ले जाता। अब इसे यूँ कहा जाए कि ये भी लाल किले की तरह गांव की राष्ट्रीय धरोहर हो गया था। अच्छा एक बात और थी अब तो सुरते के कोट को गांव के रिश्तेदार भी पहचानने लगे थे कि हमारा समधी जो कोट पहन कर आया है ये सुरते का है। और कोट का आलम ये था कि लोग उसे पायजामे के ऊपर पहन जाते कोई धोती के ऊपर कोट पहन जाता पेंट तो बमुश्किल एक दो जनों के ही पास थीं।
सुरते की गांव में बड़ी चल बल हो गई थी। पंच पंचाट जहां बैठते और जो हुक्का भरा जाता उसकी नली पहले सुरते को ऑफर की जाती। क्योंकि पंच पंचाट भी सुरते के कोट को कई बार पहन चुके थे। सुरता गांव का बड़ा रसूख वाला आदमी बन गया मजाल है जो गांव का कोई आदमी उसे किसी बात केलिये मना करता। सुरता यूँ तो दिलदार आदमी था पर उसकी गांव के भग्गू नट से जरा भी नहीं बनती थी, एक बार भग्गू नट भी उससे कोट मांगने आया पर सुरते ने दो टूक उसे मना कर दिया। उसके कुछ महीनों बाद भग्गू की मौत भी हो गई, सुरते को दुख हुआ कि काश भग्गू नट को भी कोट पहनने दे देता जब सारे गांव ने ही पहना है तो। पर अब कुछ न हो सकता था। कोट को लोगों ने पहन पहन कर एकदम जर्जर कर दिया था और अब तो उसमें से बू भी आने लगी थी क्योंकि गांवों में ड्राइक्लीन की तो बात ही भूल जाओ, बस लोग पहनते पानी में भिगोकर निकालते और सुखाकर सुरते को दे आते, अब उसमें सलवटें भी पड़ गई थीं।

एक दिन फूला चौधरी अपनी बेटी के ससुराल गया, वो भी सुरते का कोट पहन गया, उस वक़्त आने जाने का साधन ऊंट गाड़ी या ट्रैन होती थी , ट्रैन तो गांव में आती ही न थी, वैसे आज तक नहीं आती है, तो फूला चौधरी ऊंट गाड़े से ही बेटी के ससुराल हो आया, जब वो गांव में लौटा तो अंधेरा गहरा चुका था, फूला जैसे ही ऊंट गाड़ी से उतरा उसे चर्रर की आवाज सुनाई दी, उसने गौर से देखा तो, पता चला ऊंट गाड़े की कील में फंसकर सुरते का कोट फट गया है, देखते ही फूला के होश उड़ गए। उसे डर था कि गांव वाले उसके साथ अपराधी की तरह बर्ताव करेंगे क्योंकि उसने महज सुरते का कोट नहीं फाड़ा था बल्कि गांव की राष्ट्रीय धरोहर को फाड़ डाला है, सुरता तो उसे जान से ही मार डालेगा, क्यूंकि सुरते की आन बान शान तो उसका कोट ही था जिसके दम पर पूरे गांव में उसकी चलती थी, और पंच पंचाट भी हुक्के का पहला कश उसे ही देते थे। फूला घबराया हुआ घर में घुसा और अपनी पत्नी को सारा किस्सा कह सुनाया, उसकी बीवी बहुत नाराज हुई कि उसने तो पूरे गांव में थू थू वाला काम कर दिया है, इज्जत का पलीदा निकल जायेगा। पर वो थोड़ी होशियार थी वो बोली सुनो तुम्हारे दोस्त रमकु ओझा को बुलाकर लाओ कुछ जुगाड़ करते हैं।

घबराया हुआ फूला भागकर रमकु ओझा को बुला लाया, उन दोनों ने घबराते हुए रमकु को सारी राम कहानी कह सुनाई, रमकु को भी फूला पर बहुत गुस्सा आया रमकु भी कई बार सुरते के कोट को पहनकर अपनी धाक जमा चुका था। पर फूला और उसकी पत्नी के अनुनय विनय के बाद व दोस्ती के वास्ते से कुछ पिघला और उनकी मदद करने को राजी हुआ, पर राजी भी हुआ तो चार जौ की बारी के बदले तीन मेहनताना और एक बोरी जुर्माना क्योंकि वो भी सुरते के कोट को अपना कोट मानता था। उन तीनों ने तय किया कि सुबह ये अफवाह फैलाई जाएगी कि भग्गू नट को सुरते ने कोट देने से इनकार कर दिया और उससे खफा होकर भग्गू नट की आत्मा जो भी भूत बन चुकी है और जो उस कोट को पहनता है उसपर चढ़ जाती है। ये तय हुआ कि किसी भी हालत में गांव वालों को ये भनक न पड़े की कोट फट गया है।

रमकु अपने घर पर जाकर सो गया और सुबह ही फूला की बीवी ने हाय तौबा मचा दी और फूला उछल कूद मचाने लगा , पूरे गाँव में खबर फैल गई कि फूला पर कोई ऊपरी पराई(भूत प्रेत का साया) चढ़ गई है। आनन फानन में सारा गांव इकट्ठा हो गया। रमकु ओझा को बुलाया गया, रमकु ने देखा फूला को चार चार आदमी पकड़े हुए थे, फिर भी फूला किसी के बस में नहीं आ रहा था, रमकु ने अपनी झोली से कुछ राई, अरहर, तिल के दाने मुट्ठी में भरकर निकाले और मुहँ के पास ले जाकर कुछ बुदबुदाया और फूला पर फेंक दिया, अब फूला ने उछल कूद मचानी बन्द कर दी पर अभी भी मुहँ से डरावनी आवाजें निकाल रहा था, रमकु ने उसके गिर्द एक गोल घेरा बना दिया , और एक छोटी हंडिया में कुछ सामग्री जला ली, उसने उसकी धूनी अपने मोरपंखी से फूला की और की फूला जोर जोर से चिल्लाने लगा, रमकु ने कड़क आवाज में पूछा "कौन है तू, बता कौन है तू, इसे क्यों तंग कर रहा है, बता नहीं तो जलाकर भस्म कर दूँगा।"फूला कुछ न बोल तो उसने हंडिया में रोपे हुए चिमटे को फूला के हाथ से छुआया "बताता है कि जला दूँ।" रमकु दहाड़ा, पूरा गांव साँसे रोके सब देख सुन रहा था, फूला जोर से चीखा, "जलाओ नहीं बताता हूँ , बताता हूँ।" "बता फिर कौन है तू और क्यों आया है।"कहते हुए रमकु ने फिर अपना चिमटा खड़खडाया।

"मैं भग्गू हूँ, भग्गू नट।"फूला ने खरखराति आवाज में बताया। "इसमें क्यों आया, क्या चाहता है।"रमकु ने कुछ पावडर जैसा फिर फूला पर फेंक दिया। "मैं इसमें आया हूँ, आया हूँ..., इसलिए आया हूँ कि इसने सुरते के कोट को पहना है, सुरते ने मुझे कोट नहीं दिया, जो भी ये कोट पहनेगा मैं उसमें आऊंगा।" फूला ने जोर से किहूक लगाई। ये सुनकर सब सकते में आ गए, सबसे ज्यादा सुरता। उसे लगा उसने भग्गू नट को कोट के लिए इनकार कर अच्छा नहीं किया, पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था। सब तरफ फुसफुसाहट फैल गई। रमकु ने इशारे से पंच पंचाट के लोगों को बुलाया, उनके कान में कुछ कहा। वो सब सुरते को साइड में ले गए, फूला जोर जोर से हाँफ रहा था और डरावनी आवाजें निकाल रहा था। पंचों ने सुरते को समझाया भाई ये गांव की सुरक्षा का सवाल है, हम जानते हैं ये बहुत दुखदाई होगा, पर सबकी भलाई इसी में है कि तुम्हारे इस कोट को जला दिया जाए, क्योंकि अब जो भी ये कोट पहनेगा भग्गू की आत्मा उसमें आ जायेगी और उसे तंग करेगी, ये सुन सुरते की तो जैसे जान ही निकल गई उसकी आन बान तो वो कोट ही है जिसे जलाने के लिए कहा जा रहा है, पर सुरते ने मन मारकर नम आँखों के साथ गांव की भलाई के लिए कोट जलाने की इजाजत दे दी, सुरते के कोट के जलाए जाने की खबर सुन सारा गांव सकते में आ गया, सबकी यादें उस कोट के साथ जुड़ीं थी, सुरते के कोट को रमकु गोला बनाकर ले आया और धधकती अग्नि के हवाले कर दिया धु धु करके कोट जल गया, सारा गांव उस कोट में अपने अरमानों की चिता जलती देखता रहा, और सबने नम आंखों से कोट को अंतिम विदाई दी, रमकु ओझा ने फूला पर पवित्र जल छिड़का और फूला एक चीत्कार मारकर वहीं ढेर हो गया। रमकु ने घोषणा की अब फूला पर से भग्गू का भूत उतर गया है आप लोग अपने अपने घर जाइये।

सुरता मरे मरे कदमों से घर आ गया और उसके पीछे एक एक करके गांव के लोग उसके घर आये और उसे सांत्वना दी, और कोट की यादों से जुड़ी अनेक कहानियां कही और बातें की। कोट जल गया पर सुरते की इज्जत गांव में बरकरार रही, उसे तब भी पंच पंचाट में हुक्का गुड़गुड़ाने का पहला मौका मिलता, उधर बेचारा भग्गू जिसकी आत्मा शायद किसी और योनि में जन्म ले चुकी होगी फिर भी प्रेतात्मा बन गई, पूरे गांव में भग्गू नट के परिवार की थू थू होती थी, बेचारा भग्गू का परिवार अकारण की अपराधी बन गया था, जब भी उसके घर के लोग सुरते के सामने से गुजरते शर्म से पानी पानी हो जाते, उसके बाद चार पांच और लोगों पर भग्गू नट की आत्मा आई और रमकु ओझा ने एक एक बोरी जौ के बदले भग्गू की आत्मा को उनपर से उतारा, फिर एक दिन भग्गू नट के परिवार ने रमकु ओझा को पांच जौ की बोरी देकर भग्गू की आत्मा को हमेशा के लिये रमकु ओझा से एक शीशी में भरकर गड़वा दिया। उसके बाद जब भी गांव में शादी विवाह होता सुरते के कोट को याद करके आह भरी जाती रही।

संजय नायक"शिल्प"

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5 Comments

Shalini Sharma

05-Oct-2021 01:32 PM

Very nice

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Fiza Tanvi

04-Oct-2021 03:35 PM

Good

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Swati chourasia

01-Oct-2021 05:30 PM

Very nice

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